किसी धर्मका अपमान करने की इजाजत मेरा धर्म नहीं देता.

झुका लेता हूं सर अपना,
सभी धर्मस्थलों के सामने,
क्योंकि किसी धर्मका अपमान करने की इजाजत मेरा धर्म नहीं देता..
मज़हब तो ये दो हथेलियाँ ही बताती हैं,
जुड़ें तो "पूजा" खुलें तो "दुआ"कहलाती हैं..




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एक घर में पड़ी किताब - गीता और कुरान आपस में कभी नहीं लड़ते,
और जो उनके लिए लड़ते हैं वो कभी उन दोनों को नहीं पढ़ते.



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 धर्म के उन ठेकेदारो से तो वो दुकानदार ठीक हैं ;
जो गीता और कुरान साथ मे सजा कर रखते है..!!

सत्य ने ज्यारे पीरसवा मां आवे त्यारे....

प्रभू का पत्र- दूसरा नाम...आस्था और विश्वास ही तो है।

प्रभू का पत्र
मेरे प्रिय...
सुबह तुम जैसे ही सो कर उठे, मैं तुम्हारे बिस्तर के पास ही खड़ा था। मुझे लगा कि तुम मुझसे कुछ बात
करोगे। तुम कल या पिछले हफ्ते हुई किसी बात या घटना के लिये मुझे धन्यवाद कहोगे। लेकिन तुम फटाफट चाय पी कर तैयार होने चले गए और मेरी तरफ देखा भी नहीं!!!
फिर मैंने सोचा कि तुम नहा के मुझे याद करोगे। पर तुम इस उधेड़बुन में लग गये कि तुम्हे आज कौन से कपड़े पहनने है!!!
फिर जब तुम जल्दी से नाश्ता कर रहे थे और अपने ऑफिस के कागज़ इक्कठे करने के लिये घर में इधर से उधर दौड़ रहे थे...तो भी मुझे लगा कि शायद अब तुम्हे मेरा ध्यान आयेगा,लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
फिर जब तुमने आफिस जाने के लिए ट्रेन पकड़ी तो मैं समझा कि इस खाली समय का उपयोग तुम मुझसे बातचीत करने में करोगे पर तुमने थोड़ी देर पेपर पढ़ा और फिर खेलने लग गए अपने मोबाइल में और मैं खड़ा का खड़ा ही रह गया।
मैं तुम्हें बताना चाहता था कि दिन का कुछ हिस्सा मेरे साथ बिता कर तो देखो,तुम्हारे काम और भी अच्छी तरह से होने लगेंगे, लेकिन तुमनें मुझसे बात
ही नहीं की...
एक मौका ऐसा भी आया जब तुम
बिलकुल खाली थे और कुर्सी पर पूरे 15 मिनट यूं ही बैठे रहे,लेकिन तब भी तुम्हें मेरा ध्यान नहीं आया।
दोपहर के खाने के वक्त जब तुम इधर-
उधर देख रहे थे,तो भी मुझे लगा कि खाना खाने से पहले तुम एक पल के लिये मेरे बारे में सोचोंगे,लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
दिन का अब भी काफी समय बचा था। मुझे लगा कि शायद इस बचे समय में हमारी बात हो जायेगी,लेकिन घर पहुँचने के बाद तुम रोज़मर्रा के कामों में व्यस्त हो गये। जब वे काम निबट गये तो तुमनें टीवी खोल लिया और घंटो टीवी देखते रहे। देर रात थककर तुम बिस्तर पर आ लेटे।
तुमनें अपनी पत्नी, बच्चों को शुभरात्रि कहा और चुपचाप चादर ओढ़कर सो गये।
मेरा बड़ा मन था कि मैं भी तुम्हारी दिनचर्या का हिस्सा बनूं...
तुम्हारे साथ कुछ वक्त बिताऊँ...
तुम्हारी कुछ सुनूं...
तुम्हे कुछ सुनाऊँ।
कुछ मार्गदर्शन करूँ तुम्हारा ताकि तुम्हें समझ आए कि तुम किसलिए इस धरती पर आए हो और किन कामों में उलझ गए हो, लेकिन तुम्हें समय
ही नहीं मिला और मैं मन मार कर ही रह गया।
मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ।
हर रोज़ मैं इस बात का इंतज़ार करता हूँ कि तुम मेरा ध्यान करोगे और
अपनी छोटी छोटी खुशियों के लिए मेरा धन्यवाद करोगे।
पर तुम तब ही आते हो जब तुम्हें कुछ चाहिए होता है। तुम जल्दी में आते हो और अपनी माँगें मेरे आगे रख के चले जाते हो।और मजे की बात तो ये है
कि इस प्रक्रिया में तुम मेरी तरफ देखते
भी नहीं। ध्यान तुम्हारा उस समय भी लोगों की तरफ ही लगा रहता है,और मैं इंतज़ार करता ही रह जाता हूँ।
खैर कोई बात नहीं...हो सकता है कल तुम्हें मेरी याद आ जाये!!!
ऐसा मुझे विश्वास है और मुझे तुम
में आस्था है। आखिरकार मेरा दूसरा नाम...आस्था और विश्वास ही तो है।
.
.
.
तुम्हारा ईश्वर...
दोस्तों की ख़ुशी के लिए तो कई मैसेज भेजते हैं । देखते हैं परमात्मा के धन्यवाद का ये मैसेज कितने लोग शेयर करते हैं ।
किसी पर कोई दबाव नही है ।

कड़वी गोलियाँ चबाई नही निगली जाती हैं।


"कड़वी गोलियाँ चबाई नही
निगली जाती हैं।"
उसी प्रकार जीवन में
अपमान , असफलता , धोखे जैसी कड़वी बातों को सीधे गटक जाऐं...
.
उन्हें चबाते रहेंगे...
यानि याद करते रहेंगे
तो जीवन कड़वा ही होगा।


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असफलता कोई अकस्मात घटी हुयी दुर्घटना नहीं है । कोई भी व्यक्ति रातों रात असफल नहीं होता, बल्कि असफलता हर दिन दोहराये जाने वाली त्रुटियों का सामुहिक मिश्रण है।

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ईश्वर "टूटी" हुई चीज़ों का इस्तेमाल कितनी ख़ूबसूरती से करता है ..,,
जैसे ....
बादल टूटने पर पानी की फुहार आती है ......
मिट्टी टूटने पर खेत का रुप लेती है....
फल के टूटने पर बीज अंकुरित हो जाता है .....
और बीज टूटने पर एक नये पौधे की संरचना होती है ....
इसीलिये जब आप ख़ुद को टूटा हुआ महसूस करे तो समझ लिजिये ईश्वर आपका इस्तेमाल किसी बड़ी उपयोगिता के लिये करना चाहता है ।
इसीलिए सदैव प्रसन्न रहें और हँसते रहें ।


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       कर्मों की आवाज़
      शब्दों से भी ऊँची होती है I
यह आवश्यक नहीं कि
       हर लड़ाई जीती ही जाए I
आवश्यक तो यह है कि
   हर हार से कुछ सीखा जाए II
                                       
     

दृष्टि नहीं दृष्टिकोण सही होना चाहिए!

अँधे को मंदिर आया देख लोग हँसकर बोले
"मंदिर में दर्शन करने आये तो हो
पर क्या भगवान को देख पाओगें"??
अँधे ने कहाँ- "क्या फर्क पड़ता हैं,
मेरा भगवान तो मुझे देख लेगा"
दृष्टि नहीं दृष्टिकोण सही होना चाहिए!

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एक खरगोश रोज़ एक लोहार की दुकान पर जाता और पूछता
“गाजर है???”
,
लोहार इंकार कर देता।
एक दिन लोहार को बहुत गुस्सा आया और उसने पकड़कर खरगोश के दांत तोड़ दिए।
,
और कहा – अब तू “गाजर” खा के दिखा?
फिर ?
फिर क्या
अगले दिन खरगोश आया और पूछने लगा –
“गाजर का हलवा है???”
*इसे कहते हैं 
हकारात्मक वलण

दुनियां से बात करने के लिये फोन की जरूरत होती है ! और प्रभु से बात करने के लिये मौन की जरूरत होती है।


दुनियां से बात करने के लिये फोन की जरूरत होती है !
और प्रभु से बात करने के लिये मौन की जरूरत होती है।
फोन से बात करने पर बिल देना पड़ता है,
और ईश्वर से बात करने पर दिल देना पड़ता है।
"माया" को चाहने वाला, "बिखर" जाता है.
भगवान को चाहने वाला, "निखर" जाता है..
         क्यों भरोसा करते हो
                  गैरो पर....
          जबकि तुम्हें चलना है
              खुद के पैरो पर...


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सारा जहाँ उसी का है
      जो मुस्कुराना जानता है
रोशनी भी उसी की है
      जो शमा जलाना जानता है
हर जगह मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे है।
      लेकिन ईश्वर तो उसी का है
जो "सर"  झुकाना जानता है।


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तू इस कदर इन्सान को इतना बेबस ना बना मेरे खुदा…!!!
की तेरा बन्दा तुजसे पहले किसी और के आगे झुक जाये…..!!!



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जींदगी वन-डे मैच
की तरह है ।
जिस मे रन तो बढ़ रहे है ।
पर ओवर घट रहे हैं।
मतलब धन तो बढ़ रहा है ।
पर उम्र घट रही है ।
इसलिए हर दिन कुछ न कुछ पूण्य के
चौके छक्के  लगाये
ताकि ऊपर बेठा एम्पायर हमें
मोक्ष की ट्रॉफी दे ....



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आज कोनसे अच्छे कपडे पेहनू,
                जिस्से में आज अच्छा दिखूं,
             'ये हर रोज हम सोचते हे'
मगर आज कोनसा अच्छा विचार लेके  चलु,
     जिस्से में भगवान को अच्छा लगु,
          'ये हर रोज कोई नहीं सोचता'..




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अच्छे लोगो की भगवान परीक्षा लेता है पर साथ कभी नहीं छोड़ता....
और बुरे लोगो को भगवान बहुत कुछ देता है मगर साथ नही देता......


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आज कल जहाँ भी जाए वहाँ लिखा होता है.... 
"आप कैमरे की नज़र में है"
पढने के साथ ही व्यक्ति सतर्क हो जाता है,और यथासंभव ग़लत काम करने से परहेज़ करता है। जबकि ये इंसान द्वारा निर्मित उपकरण मात्र है।
     कितना मूर्ख है इंसान कि भूल जाता है कि हम हर समय भगवान की नज़र में हैं, और वहाँ की नज़र न ख़राब होती है, न बंद होती है, न किसी के नियंत्रण मे होती है, यानी बचने की कोई संभावना नहीं है
   ध्यान रहे आप भगवान की नज़र में है कैमरे की नही l



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एक मूर्ति बेचने वाले गरीब कलाकार के लिए...किसी ने क्या खूब लिखा है....
""गरीबो के बच्चे भी खाना खा सके त्योहारों में, तभी तो भगवान खुद बिक जाते है बाजारों में..!

जब गम आये तो वो भी कभी खा लेना दवाई समझ कर .

किसीने खुब सही कहा है ....
खुशीयॉ आये जिंदगी मै तो
      चख लेना मिठाई समझ कर ....
.
जब गम आये तो वो भी
    कभी खा लेना दवाई समझ कर ....

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आँसुओं से जिनकी आँखें नम नहीं, 
क्या समझते हो कि उन्हें कोई गम नहीं? 
तड़प कर रो दिए गर तुम तो क्या हुआ, 
गम छुपा कर हँसने वाले भी कम नहीं।


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  अभी कुछ दूरियां तो कुछ फांसले बाकी हैं,
पल-पल सिमटती शाम से कुछ रौशनी बाकी है,
हमें यकीन है कि कुछ ढूंढ़ता हुआ वो आयेगा ज़रूर
अभी वो हौंसले और वो उम्मीदें बाकी हैं।


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कदम कदम पे बहारों ने साथ छोड़ दिया,
पड़ा जब वक़्त तब अपनों ने साथ छोड़ दिया,
खायी थी कसम इन सितारों ने साथ देने की
सुबह होते देखा तो इन सितारों ने साथ छोड़ दिया।


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ऐ खुदा बुला ले अब तो अपने पास मुझे,
क्यों मुझसे तू और इम्तेहान लिए जाता है,
अब किसी को जरुरत नहीं है जहाँ में मेरी
ये इंसान यहाँ पर बेमतलब जिए जाता है.


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जीवन का हर पन्ना तो रंगीन नही होता,
हर रोने वाला तो गमगीन नही होता,
एक ही दिल को कोई कब तक तोड़ता रहेगा
अब कोई जोड़ता भी है तो यकीन नही होता।
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एक शख्स पास रह के समझा नहीं मुझे,
इस बात का मलाल है शिकवा नहीं मुझे,
मैं उस को बेवफाई का इलज़ाम कैसे दू
उसने तो दिल से ही चाहा नहीं मुझे !


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खामोश बैठें तो लोग कहते हैं
उदासी अच्छी नहीं,
ज़रा सा हँस लें तो
मुस्कुराने की वजह पूछ लेते हैं !


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अनजाने में यूँ ही हम दिल गँवा बैठे,
इस प्यार में कैसे धोखा खा बैठे,
उनसे क्या गिला करें.. भूल तो हमारी थी
जो बिना दिलवालों से ही दिल लगा बैठे।


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ना तो जी पाती हु और ना ही मौत आती
ए-ज़िन्दगी क्यों मुझे है इतना आज़माती
जलती हर शाम और सुबह भुझती हुयी है मेरी
इस जिस्म में अब रूह को बड़ी घुटन सी होती
ना तो कोई तमंन्ना मेरी ना ही कोई आरज़ू रही
अब दिखावे की हँसी मुझसे हँसी नहीं जाती
आ मौत बनके मेरे मेहबूब, तू ही लगा गले….
के बस अब और ज़िन्दगी मुझसे संभाली नहीं जाती


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इश्क़-ए-महफ़िल में हम भी एक साज़ सुनाने आये हैं,
आज उनकी यादों को दिल की दीवारों से मिटाने आये हैं,
खेलकर चले गए मेरे दिल की वफाओ से खिलौना समझकर
इसीलिए बेवफा उन्हें हम आज सरे आम कहने आये हैं..!!


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मेरी आँखों से बहते अश्क भी अब सूखने लगे हैं,
क्या बताये तुम्हे की किस कदर हम टूटने लगे हैं,
जिंदगी में जो वजह थी मेरे मुस्कुराने की,
आज वही वजह बनी हैं मेरे टूटकर बिखर जाने की